Ajay Kumar Chaudhary Blog
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स्याह रात में सुब्ह की आस कर
मुसाफिर न ऐसे मन निराश कर
फूल कांटों में देख मुस्काता कैसे
खुशबू लुटा कर झर जाता जैसे
जीवन तू भी सबके मधुमास कर
मुसाफिर न ऐसे मन निराश कर
मशाल लिए जुगनू हैं फिर रहे
अंधेरे भी कितने उनसे डर रहे
इल्म से अंधेरों का नाश कर
मुसाफिर न ऐसे मन निराश कर
आंधी में दिया कुछ मचल रहा
जोर हवाओं का यूं कुचल रहा
काम तू भी ऐसे कुछ खास कर
मुसाफिर न ऐसे मन निराश कर
फर्ज ओ इमां को यूं मुकाम बना
हौसलों को भंवर में पतवार बना
वजूद अपना खुद ही तलाश कर
मुसाफिर न ऐसे मन निराश कर
अजय कुमार चौधरी – India
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