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वह तो उड़ गयी…

Ajay Kumar Chaudhary Blog
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कविता
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मुंह मीठा करने को
कुछ शब्द हमने बांटे हैं
एक कविता का पिता
जो बना हूँ आज
मेरी लेखनी ने उसे
जना आज प्रात ही
थोडा द्वन्द था उसे
रात भर छटपटाई थी
पल रहा था
भाव उदर में
जो मैंने किया था
गर्भ में उसके रोपित
पर उषा की
किरण फूटते ही
उसकी व्यथा भी
छूट गयी
शुभ्र कागज के
बिछौने पर
लेखनी अब
मेरे सीने से लगकर
विश्राम कर रही है
और कविता…..!
वह तो उड़ गयी…
भोर के पंछियों के साथ
नीले आसमान में
जैसे स्वर
उड़ते फिरते हैं
हवाओं के साथ
करते हैं…
धमा चौकड़ी..!
– अजय कुमार चौधरी

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