Ajay Kumar Chaudhary Blog
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क्रांतियां !
पैदा नहीं
की जा सकती
कदापि !!
वह फूट पड़ती हैं
स्वतः
अंधेरों के गर्भ से
तड़पती कौंध
की तरह।
वह छुपी होती हैं
शायद …
अंकुर की तरह
बीज में।
इंतज़ार
करती हैं वह
सही वक़्त पर
फटने का !
सूरज की
आँच पर
जैसे बादल
पकते हैं… फिर
बरस पड़ते हैं
किसी
आक्रोश की तरह।
©अजय कुमार चौधरी
….. लखनऊ (India)
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